दिल्ली का जनादेश सभी राजनीतिक दलों के लिए खास रहा, भाजपा और कांग्रेस के लिए बड़ा सबक है। आपकी जीत को महज हार-जीत के तराजू में नहीं तौला जाना चाहिए। आप और केजरीवाल की जीत में दिल्ली के मतदाताओं की मंशा को समझना होगा। कांग्रेस और भाजपा के लिए दिल्ली की जनता ने बड़ा संदेश दिया है।
दिल्ली में कांग्रेस की जमींन खत्म हो गई है। उसकी बुरी पराजय पार्टी के नीति नियंताओं पर करारा थप्पड़ है। कभी दिल्ली कांग्रेस की अपनी थी। शीला दीक्षित जैसी मुख्यमंत्री ने दिल्ली को बदल दिया था। वहां के जमींनी बदलाव के लिए आज भी शीला दीक्षित को याद किया जाता है। लेकिन उनके जाने के बाद दिल्ली से कांग्रेस का अस्तित्व की मिट गया। यह सोनिया और राहुल गांधी के लिए आत्ममंथन का विषय है।
दिल्ली की जनता ने तीसरी बार केजरीवाल को केंद्र शासित प्रदेश की सत्ता सौंप यह साफ कर दिया है कि दिल्ली में जो सीधे जनता और और उसकी समस्याओं से जुटेगा दिल्ली पर उसी का राज होगा। भावनात्मक मसलों से वोट नहीं हासिल किए जा सकते हैं। दिल्ली से निकले इस जनादेश के संदेश का बड़ा मतलब है। भाजपा ने दिल्ली पर भगवा फहराने के लिए पूरी तागत झोंक दिया। लेकिन मतदाताओं के बीच मुख्यमंत्री केजरीवाल की लोकप्रियता कम नहीं हुई। दिल्ली के चुनाव परिणाम ने यह साबित कर दिया है कि सिर्फ मोदी और हिंदुत्व को आगे कर भाजपा हर चुनाव मिशन को फतह नहीं कर सकती है। भाजपा 22 साल बाद भी अपने वनवास नहीं खत्म कर पाई है।