0 श्रीजिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी में आनलाइन जिनवाणी प्रवचन
रायपुर। एमजी रोड स्थित श्रीजिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी में सोमवार को आनलाइन फेसबुक लाइव चातुर्मासिक प्रवचन सभा के अंतर्गत साध्वी सम्यकदर्शनाश्रीने कहा कि उत्पन्न परिस्थितियों में ना ही उलझें और ना ही घबराएं, मनोमंथन कर केवल अपनी सोच का सकारात्मक बनाए रखें। एक-सी परिस्थितियां ज्यादा दिनों तक नहीं रहतीं, यदि परिस्थितियों में उलझ गए तो वह तुम्हारे मन को विकारग्रस्त कर देंगी, निराशा हताशा और अवसाद, दुख आदि उत्पन्न कर देंगी। इसीलिए ज्ञानियों ने कहा कि हमें परिस्थितियों को नहीं स्वयं को बदलना होगा, स्वयं की सोच को सकारात्मक करना होगा। हर परिस्थिति, प्रसंगों, निमित्तों में हम अपनी सोच सकारात्मक बनाए रखें। मेरा तनाव खत्म होता जा रहा है, मनमुटाव दूर हो रहा है, मेरी अशांति कम होती जा रही है, ऐसी सकारात्मक सोच ही हमें साधक बनाती है। अन्यथा नकारात्मक सोच स्वयं के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। क्योंकि जो कुछ भी अच्छा या बुरा होता है वह व्यक्ति की सोच पर ही निर्भर है। भयंकर विकट परिस्थितियों में भी सम भाव बनाए रखना यह व्यक्ति की सकारात्मक सोच से ही संभव है।
मन मंथन कर पाएं सकारात्मकता का नवनीत
उक्त चिंतन को स्पष्ट करते हुए साध्वी भगवंत ने आगे कहा कि जिस प्रकार दही को बिलोने पर मक्खन या नवनीत मिलता है मगर पानी को बिलोया जाए तो कुछ नहीं मिलता बल्कि सारा श्रम, सारी साधना व्यर्थ चली जाती है। ठीक उसी प्रकार पानी रूपी परिस्थितियों को बिलोते रहे तो उससे धैर्य, शांति नहीं मिल पाएगी, उसके लिए अपने दही रूपी मन को बिलोना होगा, उससे धैर्य और शांति का नवनीत मिल ही जाएगा। यदि परिस्थितियां स्वयं के समक्ष आईं तो स्वयं को बदलने का पुरूषार्थ करें। क्योंकि सफलता, शांति, अनुकूलता, सुख आदि की प्राप्ति सकारात्मक सोच से ही मिलती है। अन्यथा यदि सोच ही सकारात्मक न हो तो मेहनत करने पर भी सफलता नहीं मिल पाती, एक के बाद एक अशुभ निमित्त आते चले जाते हैं। यदि मन मंथन कर सकारात्मकता के कोमल नवनीत को पा लिया तो फिर कोई अशुभ निमित्त हमारा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते। परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना अपने मन को मक्खन की तरह कोमल बना लें, सुख-शांति स्वमेव मिलती चली जाएगी। जब तक परिस्थितियों के दास बने रहोगे, तब तक मन को शांति नहीं मिल पाएगी। वीर प्रभु भगवान महावीर के जीव ने 27वें भव में अपने मन को इतना कोमल बना लिया कि विकट परिस्थितियां भी उन्हें विचलित नहीं कर पाईं। उन्होंने मन का ऐसा मंथन किया कि वे मोक्षगामी बनकर आत्मा से परम आत्मा बन गए। कष्ट आया है तो वह भी स्वीकार और आनंद मिल रहा है तो वह भी स्वीकार। कोई ”हां” बोले तो भी स्वीकार और कोई “ना” बोले तो भी स्वीकार। परिस्थितियों के दास हमें नहीं बनना, यदि किसी ने ”ना” कहा है तो उसमें भी कोई राज होगा। यदि कोई तुम्हारे प्रतिकूल है तो उसे भी निभा लो, इसमें तुम्हारा ही भला है। यदि प्रतिकूल को निभा लिया तो परिस्थितियां कभी-भी बद से बदतर नहीं होंगी। परिस्थितियों को बनाना-बिगाड़ना, सुखी या दुखी होना हमारे मन की अवस्था पर निर्भर है। अशांति या दुख की वजह परिस्थितियां नहीं हमारा मन ही है।